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Famous festivals of Jharkhand(झारखंड के प्रमुख त्योहार)

झारखंड भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक प्रमुख राज्य है, जो आपने प्राकृतिक सुंदरता आदिवासी संस्कृति और यहां के परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। झारखंड में भिन्न-भिन्न प्रकार की जनजातियां और समुदाय निवास करते हैं। यहां पर प्रत्येक मौसम और कृषि गतिविधि के अनुसार त्योहार मनाया जाता है। इनमें से कई त्योहार प्रकृति, कृषि और जनजातीय मान्यताओं से related होते हैं। इन त्योहारों के माध्यम से यहां के लोग अपनी आस्थाओं और परंपराओं को बचाए रखें हैं। आइए हम लोग इस लेख में झारखंड के प्रमुख त्योहार(Famous festivals of Jharkhand) के बारे में जानते हैं।

झारखंड के प्रमुख त्योहार (Famous festivals of Jharkhand) निम्नलिखित है:-

No.Festival
1.सरहुल
2. करम
3.सोहराई 
4. टुसु पर्व 
5.कदलेटा
6. फगुआ
7.नवाखनी 
8.देव उठान
9.भाई भीख
10.चांडी पर्व
11.सूर्याही पूजा
12.वंदना पर्व
13.रोहिन / रोहिणी
14.छठ पर्व
15.जावा पर्व
16.देशाऊली
17.जनी शिकार
18.सेंदरा पर्व
19.भगता पर्व
20.माघे पर्व
21.सावनी पूजा
22.हल पुन्ह्य
23.आषाढ़ी पूजा
24.धान बुनी
25.बहुरा(राइज बहरलक)

सरहुल पूजा, Famous festivals of Jharkhand

सरहुल झारखंड की जनजातियों का सबसे प्रमुख/बड़ा त्योहार है। इस पर्व को विभिन्न जनजातियों में भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है।

जनजाति  सरहुल का अन्य नाम
उरांव जनजाति  खद्दी
खड़िया जनजाति जकोर
मुंडा जनजाति  सरहुल
संथाल जनजातिबा-परब / बा-पोरोब

यह त्योहार प्रकृति से संबंधित है। इसे चैत माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इसमें साल वृक्ष की पूजा की जाती है। जनजातियों के अनुसार साल वृक्ष उनके देवता ‘बोंगा’ का निवास स्थान है। यह फूलों का त्योहार है। जब बसंत के मौसम में साल के वृक्ष पर नए फूल खिलते हैं उसी समय यह पर्व मनाया जाता है।

Sarhul , Famous festivals of Jharkhand
Sarhul , Famous festivals of Jharkhand

इस पर्व को 4 दिन तक मनाया जाता है।

पहला दिन –  इस दिन मछली से अभिषेक किए हुए जल को घर आंगन में छिड़का जाता है।

दूसरा दिन –  दूसरे दिन उपवास किया जाता है और गांव का पुजारी ‘पाहन’ हर घर के दरवाजे में साल के फूल को लगाता है।

तीसरा दिन –  इस दिन पाहन सरई फूल (साल फूल) को सरना में स्थापित करता है और पूजा करता है। इस दिन पाहन उपवास रखता है। पूजा में मुर्गी की बलि दी जाती है। इसके बाद सुंड़ी (बली की मुर्गी का मांस और चावल को मिलाकर बनाई गई खिचड़ी) को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। रात में अखड़ा में नृत्य भी किया जाता है।

चौथा दिन –  सरहुल फूल का विसर्जन ‘गिड़िवा’ नामक स्थान पर किया जाता है।

करम पूजा , Famous festivals of Jharkhand

करम पूजा भादो माह के शुक्ल पक्ष के एकादशी को मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति से संबंधित है, जिसका प्रमुख संदेश कर्म की जीवन में प्रधानता है। यह त्यौहार सदान तथा आदिवासी में समान रूप से प्रचलित है।

यह पर्व हिंदुओं का पर्व भाई दूज के तरह ही मनाया जाता है, जो भाई-बहन के प्रेम का पर्व है। जिसमें बहन अपने भाई के जीवन की कामना के लिए उपवास रखती है।

इस दिन अखड़ा में करम वृक्ष के दो डालियां गाड़ दी जाती है तथा पाहन लोगों को ‘ करमा एवं धरमा नमक दो भाइयों’ का कथा सुनाते हैं। लोग रात-भर नाचते गाते रहते हैं।

karma, Famous festivals of Jharkhand
karma, Famous festivals of Jharkhand

उरांव जनजाति में करम के कई रूप है – जैसे राजी कडरू, जितिया, अंधुवारी, सोहराई करम।

मुंडा जनजाति में कर्म को दो श्रेणी में मनाया जाता है ।

1. राज करम –  यह घर आंगन में की जाने वाली पारंपरिक पूजा है।

2. देश करम –  यह अखरा में की जाने वाली सामूहिक पूजा है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन करम गोसाई से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। कुंवारी लड़कियां बालू भरी टोकरी में गेहूं, जौ, कुर्थी, उड़द, चना, मकई तथा मटर (सात प्रकार के अनाज) का जावा उगाती है तथा इन जावा को प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है। अगले दिन करम डाली को नदी/ तालाब में विसर्जित किया जाता है।

सोहराई , Famous festivals of Jharkhand

सोहराई में मवेशियों और पशुपति देवता की पूजा की जाती है। यह मुख्य रूप से पशुओं की पूजा है जिसे संथाल जनजाति के द्वारा दीपावली के दूसरे दिन (कार्तिक माह के अमावस्या को) मनाया जाता है।

Sohrai, Famous festivals of Jharkhand , justlearn.co.in
Sohrai, Famous festivals of Jharkhand

यह संथाल जनजाति का सबसे बड़ा पर्व है। पुरानी लोक कथाओं के अनुसार इसे धरती मां की पुत्री बिंदी के लौटने का प्रतीक माना गया है। जिसे मौत के मुंह से वापस लाया गया था।

जनजाति समुदायों द्वारा पर मनाने से पहले घरों को दीवारों पर पेंटिंग्स भी की जाती है, जिसमें चावल, पत्तियां, कोयला आदि का उपयोग किया जाता है।

यह पर्व 5 दिनों तक चलता है –

पहला दिन – इस दिन गोड टांडी (बथान) में जाहेर एरा का आह्वान (बुलावा) किया जाता है तथा रात में युवक-युवतियां प्रत्येक घरों में जाकर गो – पूजन (गाय की पूजा) करते हैं।

दूसरा दिन –  दूसरा दिन गोहाल की पूजा की जाती है तथा गौशाला को साफ-सुथरा करके उसे अल्पना से सजाया जाता है। गाय को नहलाकर, उसके शरीर को रंग कर, सिंग पर तेल और सिंदूर लगाकर उसके गले में फूलों की माला पहनाई जाती है।

तीसरा दिन – इस दिन पशुओं को धान की बाली और मालाओं से सजाया जाता है। इसे संताऊ कहा जाता है।

चौथा दिन –  इस दिन जाले होता है। जिसमें युवक-युवतियां गांव से चावल, दाल, नमक, मसाला आदि मांग कर जमा करते हैं।

पांचवा दिन –  पांचवा दिन जमा किए गए चावल दाल आदि से खिचड़ी बनाया जाता है तथा गांव के सभी लोग मिलकर खाते हैं।

टुसू पर्व (मकर पर्व /पुस पर्व), Famous festivals of Jharkhand

यह परब पंचपरगनिया क्षेत्र में कुर्मी समुदाय में ज्यादा प्रचलित है। इस दिन यहां टुसू मेला लगता है। यह कृषि से संबंधित सबसे बड़ा पर्व है।

यह परब सूर्य पूजा से संबंधित है तथा इसे मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है।

इस पर्व को किसान लोग देवी की तरह मानते हैं। इसकी तुलना मां अन्नपूर्णा लक्ष्मी से की जाती है।

यह टुसु नामक कन्या की स्मृति में मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान 15 दिनों तक घरों में अच्छे-अच्छे विशेष प्रकार के पकवान पकाए जाते हैं तथा इसे रिश्तेदारों में बांटा भी जाता है इस जिसे ‘ कूटुमारी’ कहा जाता है। इस पर्व के दौरान तिल का विशेष प्रकार का पीठा भी बनाया जाता है।

Famous festivals of Jharkhand, Tusu parv
Famous festivals of Jharkhand, Tusu parv

लड़कियां रंगीन कागज से लकड़ी/बांस के फ्रेम को सजाती है जो ऊपर से नुकिला मंदिर की तरह के आकार का बनाया जाता है, जिसे चौड़ल कहा जाता है।

मकर संक्रांति के दिन टुसु मेला में आसपास के लोग नाचते गाते हैं और चौड़ल को नदी में विसर्जित कर देते हैं।

कदलेटा

यह पर्व करम पूजा से पहले तथा भादो माह में मनाया जाता है जिसे मेढ़की भूत को शांत करने के लिए मनाया जाता है।

पाहन पूरे गांव से चावल मांग कर हड़िया उठाता है।

अखरा में साल, केंदु तथा भेंलवा की डालियां रखकर पूजा की जाती है। पूजा के बाद इन डालियों को अपने – अपने खेतों में गाड़ दिया जाता है ताकि फसल रोग मुक्त हो।

मुर्गी की बलि दी जाती है जो बाद में प्रसाद के रूप में सभी लोगों में बांट दी जाती है।

फगुआ

यह त्यौहार फागुन के अंतिम पूर्णिमा तथा चैत के प्रथम दिन को मनाया जाता है। यह होली का झारखंडी रुप है। इसमें आदिवासी लोग पाहन के साथ मिलकर अरंडी तथा सेमल की डाली को गाड़ कर संवत जलते हैं तथा इसके चारों ओर मांदर, ढोल, ढांक बजाते हैं। सुबह इसकी राख का टीका लगाया जाता है। अखरा में तथा घर में उत्सव को माहौल रहता है।

दूसरे दिन लोग जंगलों में शिकार खेलने जाते हैं और लौटने के बाद शिकारीयों के पांव धोए जाते हैं।

नवाखनी

नवाखनी त्योहार करमा के बाद मनाया जाता है।

नया अन्न को खाना ही नवाखानी कहलाता है।

गोंदली, गोडा पकने के बाद इसे घर लाकर शुद्ध ओखली/मुसल में कुट कर चूड़ा बनाया जाता है और देव-पितरों को अर्पित किया जाता है। देवता को दही-चूड़ा का तपान चढ़ाया जाता है। और घर पर आए मेहमानों को दही-चूड़ा खिलाया जाता है।

देव उठान , Famous festivals of Jharkhand

देव उठान कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाने वाला पर्व है।

इसमें देवी-देवताओं को जगाया जाता है तथा इस पर्व में के मानने के बाद ही लोग विवाह हेतु (विवाह के लिए) वर अथवा कन्या देखना शुरू करते हैं।

भाई भीख

यह 12 वर्षों में एक बार मनाया जाने वाला त्योहार है।

इस त्यौहार में बहनें अपने भाई के घर जाती है तथा वहां से भिक्षा में अनाज मांग कर लाती है। और साथ में भाई और उसका परिवार को किसी खास दिन अपने घर पर भोजन के लिए निमंत्रण भी देकर आती है। और उस दिन बकरा और चावल भाई को खिलाती है और विदा करती है।

चांडी पर्व

यह माघ महीना के पूर्णिमा को उरांव जनजाति द्वारा मनाया जाता है। इसमें महिलाएं भाग नहीं लेती हैं तथा जिसके घर में अगर कोई महिला गर्भवती हो तो उस घर के पुरुष भी भाग नहीं लेते हैं।

केवल पुरुष ही चांडी स्थल में देवी की पूजा करते हैं।

इसमें सफेद/लाल मुर्गा तथा सफेद रंग की बकरे की बलि दी जाती है।

सूर्याही पूजा

यह अगहन माह में मनाया जाता है। इसमें सफेद मुर्गी की बलि दी जाती है। तथा हड़िया का तपान भी चढ़ाया जाता है।

इसे किसी ऊंचे स्थान पर मनाया जाता है। इसमें केवल पुरुष भाग लेते हैं। महिलाओं को भाग लेना मना है।

वंदना पर्व, Famous festivals of Jharkhand

यह पर्व कार्तिक अमावस्या के समय पूरे सप्ताह मनाया जाता है। ‘ओहीरा गीत’  के साथ इस पर्व की शुरुआत की जाती है।

यह त्योहार मुख्यत:  पालतू जानवरों से संबंधित है। जानवरों को कपड़ों तथा गहनों से सजाया जाता है और प्राकृतिक रंगों से लोक कलाकृति भी की जाती है।

रोहिन/रोहिणी

‘रोहिणी’ कैलेंडर वर्ष का प्रथम त्योहार है, जो बीज बोने के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के पहले दिन से किसान खेतों में बीज बोना आरंभ कर देते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का नृत्य या लोकगीत नहीं गया जाता है।

छठ पर्व

यह झारखंड में मनाया जाने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह साल में दो बार मार्च और नवंबर के महीने में मनाया जाता है।

इस त्यौहार में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है तथा उन्हें अर्ध्य अर्पित किया जाता है।

Famous festivals of Jharkhand , chhatt puja
Famous festivals of Jharkhand , chhatt puja

यह पर्व ढलते सूर्य को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है।

इसमें प्रसाद के रूप में ठेकुआ का प्रसाद बांटा जाता है।

जावा पर्व

यह भादो माह में मनाया जाता है।

यह अविवाहित आदिवासी महिलाओं को वर के लिए तथा प्रजनन क्षमता में वृद्धि के लिए मनाया जाता है।

देशाऊली, Famous festivals of Jharkhand

दिशाऊली देव भूत की पूजा है, जिसे 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है। इसमें भुइंहारों के द्वारा काड़ा (भैंसा )की बली बड़ पहाड़ी या मरांग बुरू (पहाड़ देवता/सबसे बड़ा देवता) को दी जाती है।

भूत के नाम पर भेड़ा की बली, इष्ट देवता के नाम पर मुर्गे की बली, तथा देवी-देवता के नाम पर बकरे की बलि दी जाती है। तथा बलि को वहीं पर जमीन में गाड़ दिया जाता है।

जनी शिकार

यह भारत में केवल झारखंड में मनाया जाने वाला त्योहार है, जो उरांव जनजाति से संबंधित है।

यह त्योहार 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है।

इस दिन आदिवासी, सदान महिलाएं पुरुषों का वेशभूषा धारण करके परंपरागत हथियारों से जानवरों का शिकार करने निकलती है। तथा रास्ते में जो भी बकरी, भेड़, सूअर, हंस, बत्तख मिलता है उसका शिकार करती है।

शिकार किए गए पशु-पक्षियों को अखरा में लाया जाता है तथा वहीं पर पकाया जाता है। सभी लोग मिलकर खाते हैं और नाचते-गाते भी हैं।

यह मुगलों द्वारा आक्रमण के  दौरान महिलाओं के वीरगति प्राप्त होने की याद में मनाया जाता है।

सेंदरा पर्व

सेंदरा का मतलब शिकार होता है। इसे उरांव जनजाति द्वारा मनाया जाता है।

उरांव जनजाति में महिलाओं द्वारा शिकार खेलने को ‘मुक्का सेंदरा’ कहा जाता है।

इस पर्व के दौरान महिलाएं पुरुष का वेशभूषा धारण कर पशुओं का शिकार करते हैं।

यह त्योहार उरांवों की युद्ध विद्या, आत्मरक्षा तथा भोजन व अन्य जरूरत की पूर्ति से संबंधित है।

वैशाख में विसू सेंदरा, फागुन में फागु सेंदरा तथा वर्षा में जेठ सेंदरा मनाते हैं।

भगता पर्व

यह पर्व बसंत तथा ग्रीष्म ऋतु के मध्य में तमाड़ क्षेत्र में मनाया जाता है। इस दिन सरना मंदिर में बूढ़ा बाबा की पूजा की जाती है।

इस दिन लोग उपवास रखते हैं तथा गांव के पुजारी को सरना मंदिर में कंधे पर उठाकर लेकर जाते हैं।

माघे पर्व

माघे पर्व माघ महीने में मनाया जाता है।

इसी पर्व के साथ कृषि वर्ष का अंत होता है। तथा नए कृषि वर्ष का आरंभ होता है।

इस दिन खेतिहर मजदूरों की कार्य की अवधि/समय पूरी होती है।

धांगरों (खेतीहर मजदूरों) को रोटी-पीठा आदि खिलाकर तथा तय मूल्य को चुकाकर विदा किया जाता है। इस प्रकार यह धांगरों के विदाई का त्योहार है।

सावनी पूजा

सावनी पूजा नाम से ही पता चल रहा है कि श्रावण महीने मैं मनाया जाता है। यह सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है।

इसमें देवी की पूजा की जाती है तथा बकरे की बाली और हड़िया का तपान भी चढ़ाया जाता है।

हल पुन्ह्या

यह पर्व माघ महीने के पहले दिन शुरू होता है। इसमें किसान अपने खेतों में वृताकार ढाई चक्कर हल चलाते हैं, जिसे शुभ माना जाता है

आषाढ़ी पूजा

यह अषाढ़ महीने में मनाया जाने वाला पर्व है। इस पर्व में घर के आंगन में काली बकरी (पाठी) की बली दी जाती है। तथा हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है।

लोगों का मानना है कि इस पर्व को मनाने से गांव में चेचक जैसी महामारी नहीं आती है।

धान बुनी

यह मंडा पर्व के दिन मनाया जाता है। इस पर्व को आदिवासी तथा सदानों द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व में किसान नई धोती धारण करके खेत की जुताई करता है। तथा बांस की नई टोकरी में धान लेकर जाता है। एक दो/मुट्ठी धान लेकर शुभ मुहूर्त में धान बुवाई का शुभारंभ किया जाता है।

इस पर्व में भी हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है। तथा प्रसाद वितरित किया जाता है।

बहुरा(राइज बहरलक)

बहुरा पर्व भादो माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी को मनाया जाता है।

इस पर्व को राइज बहरलक नाम से भी जाना जाता है।

यह महिलाओं द्वारा संतान प्राप्ति एवं अच्छी वर्षा के लिए मनाया जाता है।

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